Kabir Das Ke Dohe ( कबीर के दोहे )
कबीरदास जी भक्तिकाल के ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि है | कबीर दास जी के दोहे शांत रस प्रधान होते है |हिन्दी साहित्य में महा कवि कबीर दास का योगदान अदुतीय है | संत कबीर दास जी ने अपने विलक्षण प्रतिभा से हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अतुलनीय वृध्दि की है | आइये पढ़ते है कबीर दास के अमृत के समान दोहे |
Kabir Das Ke Dohe(10 dohas of kabir in hindi )
-1-
बुरा जो देखन मै चला , बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपनो , मुझसे बुरा न कोय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीरदास जी कहते है कि जब मै इस संसार में बुरे व्यक्ति की तलाश निकला तो इस संसार में मुझे किसी बुरे व्यक्ति की प्राप्ति नही हुई | किन्तु जब मैंने अपने अंतरात्मा में झाककर देखा तो पाया की इस पुरे संसार में मुझसे बुरा कोई नही है |
-2-
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ , पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पण्डित होय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीरदास जी कहते है कि इस संसार में बड़ी - बड़ी पुस्तको का अध्ययन करने वाले नजाने कितने ही लोग अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाते है .किन्तु सभी विद्वान नही बन पाते है | यद्यपि कबीरदास जी का मानना है कि यदि मनुष्य ढाई अक्षर के शब्द प्रेम के अर्थ अथवा प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान जाता है | तो उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है |
-3-
साधु ऐसा चाहिए , जैसा सूप सुभाय |
सार सार को गहि रहै , थोथा देई उड़ाय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
अर्थ :
कबीरदास जी कहते है कि इस संसार में ऐसे सज्जन स्वभाव वाले साधु की जरुरत है जिसका स्वभाव सूप के समान हो अर्थात जो सार्थक चीज को इकठ्ठा करे निरर्थक चीजो को धुल की भांति उड़ा दे |
-4-
तनिका कबहूँ ना निन्दिये , जो पावन तर होय |
कबहूँ उड़ी आँखिन पड़े , तो पीर घनेरी होय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीरदास जी कहते है कि हमे छोटे से छोटे व्यक्ति अथवा वस्तु की निंदा नही करनी चाहिए क्योकि पाव के निचे दबा घास का तिनका भी यदि कभी उड़कर हमारे आंख में पड़ जाए तो वह हमे असहनीय दर्द अथवा पीड़ा को दे सकता है |
जाति न पूछो साधु की , पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का , पड़ा रहन दो म्यान ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीरदास जी कहते है कि हमे कभी भी किसी साधु से उसकी जाति नही पूछनी चाहिए कहने का अर्थ यह है की कबीरदास ने साधु के जाति और साधु के ज्ञान के बीच साधु के ज्ञान को अधिक महत्त्व देते है क्योकि साधु ज्ञान का पर्याय होता है | कबीरदास जी इस बात को स्पष्ट करने के लिए साधु के ज्ञान की उपमा तलवार से करते है और जाति की उपमा मयान से की है जिस प्रकार तलवार हमारे लिए म्यान से अधिक उपयोगीय होता है | ठीक उसी प्रकार साधु का ज्ञान उसके जाति से ज्यादा श्रेष्ठ है |
-6-
कबीरा कुआ एक है , पानी भरे अनेक |
बर्तन में ही भेद है , पानी सब मे एक ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि जिस प्रकार पानी भरने वाला कुआँ एक होता है किन्तु पानी भरने वाले अनेक होते है | यहाँ तक की पानी के बर्तनों में भी भेद हो सकता है किन्तु इन सभी बर्तनों में पानी एक ही होता है | कबीरदास जी कहते है कि ईश्वर के लिए सभी व्यक्ति समान होते है | मनुष्य ने ही खुद को विभिन्न जाति, धर्म ,में बाट लिया है |
-7-
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप |
अति का भला बरसना, अति की भली न धूप ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि न तो अत्यधिक बोलना अच्छा है और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है | जिस प्रकार बहुत अधिक वर्षा का होना भी अच्छा नहीं होता और बहुत अधिक धूप का होना भी अच्छा नहीं होता है |
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि जो आपकी निंदा करे उसे जितना हो सके अपने करीब ही रखना चाहिए
ऐसे व्यक्ति तो बिना साबुन और बिना पानी के ही हमारी कमियों को बता कर कमियों को हमसे दुर करने में हमारी मदद करते है |
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि जब दुःख का समय आता है तभी और केवल तभी सभी लोग भगवान को याद करते है और जब सुख का समय आता है तो भगवान को भूल जाते है | कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति सुख के समय में भी भगवान को स्मरण करता रहे है तो फिर उसे दुःख होने का कोई कारण नहीं होता है |
पंथी को छाया नहीं, फल लागत अति दुर ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि उस व्यक्ति की शक्तियों का कोई मोल नहीं जिसके गुण खजूर के समान हो क्योंक खजूर के पेड़ से न तो फल प्राप्त करना आसान है न ही किसी राही को छाया मिलना सम्भव है |
यह कबीर दास का दोहा संग्रह आपको कैसा लगा आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में कमेंट करके दे सकते है - धन्यवाद्
MORE -SELF RESPECT QUOTES IN HINDI
अति का भला बरसना, अति की भली न धूप ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि न तो अत्यधिक बोलना अच्छा है और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है | जिस प्रकार बहुत अधिक वर्षा का होना भी अच्छा नहीं होता और बहुत अधिक धूप का होना भी अच्छा नहीं होता है |
-8-
निंदक नियरे राखिए,आँगन कुटी छवाय |बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि जो आपकी निंदा करे उसे जितना हो सके अपने करीब ही रखना चाहिए
ऐसे व्यक्ति तो बिना साबुन और बिना पानी के ही हमारी कमियों को बता कर कमियों को हमसे दुर करने में हमारी मदद करते है |
-9-
दुःख में सुमिरन सब करे ,सुख में करे न कोय |जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि जब दुःख का समय आता है तभी और केवल तभी सभी लोग भगवान को याद करते है और जब सुख का समय आता है तो भगवान को भूल जाते है | कबीर दास जी कहते है कि जो व्यक्ति सुख के समय में भी भगवान को स्मरण करता रहे है तो फिर उसे दुःख होने का कोई कारण नहीं होता है |
-10-
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर |पंथी को छाया नहीं, फल लागत अति दुर ||(kabir das ke dohe)
अर्थ :
कबीर दास जी कहते है कि उस व्यक्ति की शक्तियों का कोई मोल नहीं जिसके गुण खजूर के समान हो क्योंक खजूर के पेड़ से न तो फल प्राप्त करना आसान है न ही किसी राही को छाया मिलना सम्भव है |
यह कबीर दास का दोहा संग्रह आपको कैसा लगा आप अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में कमेंट करके दे सकते है - धन्यवाद्
MORE -SELF RESPECT QUOTES IN HINDI
2 Comments