माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
भूखे रहकर भी निवाला खिलाया तूने
भूखे रहकर भी निवाला खिलाया तूने
धूप के आने पर छांव बनकर सहलाया तूने
, अनजान राहो में कांटों के बीच फूल बनकर
खिलना सिखाया तूने
दुख के काले बादली में धीरज दिलाया तूने
माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
जब मै पहली बार चला था
कभी गिरता था कभी समहला था
पैरों पर खड़ा होकर चलना सिखाया तूने
खुद पर यंकिन करना सिखाया तूने
खुद पर यंकिन करना सिखाया तूने
माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
पैरों के नीचे जमीन
सिर के ऊपर छांव बनी
तुफानो से लड़ने को चटटान बनी
कभी मिट ना सके मेरे लिए वह सम्मान बनी
माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
जाने कितने रूप लेके मुझे बचाया तूने
सबसे पहले प्यास बुझाया तूने
सबसे पहले भूख मिटाया तूने
सबसे पहले प्यार जताया तूने
माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
कृति तारों कि भांति
आकाश मे छा जाएगी
कृति दीपक कि भांति
राह दिखाएगी
मां तुमने जो दिए संस्कार
वादा है वह लोगों को भा जाएगी
माँ...आज जो कुछ भी हूं सब तेरी वजह से हूं!
Mother Poem in Hindi नामक यह कविता आपको कैसी लगी प्लीज हमें कमेंट करके बताएं!
धन्यवाद 🙏🙏🙏
शोध छात्र
शिव कुमार खरवार
राजनीतिक विज्ञान विभाग
डॉ.भीम राव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी
लखनऊ ।